(www.hapurhulchul.com) यूपी के जनपद हापुड़ से चाय पीने का आरंभ किया गया था जनपद के हापुड़ रेलवे स्टेशन पर सन 1924 में चाय की पहली कैंटीन खोली गई थी चाय की डिमांड अधिक बढ़ने पर इसके एक साल बाद ही सन 1925 में दूसरी कैंटीन अमरोहा रेलवे स्टेशन में खोली गई उस समय लोग चाय को इतना पीना पसंद नहीं करते थे |
https://hapurhulchul.com/?p=14554
अंग्रेजों ने स्टेशन पर आने वाले लोगों को (The British told the people coming to the station)
इसके चलते अंग्रेजों ने स्टेशन पर आने वाले लोगों को चाय के लाभ बताने वाले शिलापट भी लगवाए थे जनपद की इस केंटीन पर सन 1924 में दो प्रकार की चाय एक और दो आने में पिलाई जाती थी चाय को एनर्जी टॉनिक के रूप में पेश किया जाता था केंटीन संचालक बताते है कि सुबह के समय चाय फ्री में पिलाई जाती थी |
पुरातत्व विभाग ने चाय के शिलापट को (The archeology department discovered the tea stone slab.)
अब रेलवे के पुरातत्व विभाग ने चाय के शिलापट को अपने संरक्षण में लेने की पहल आरंभ की है पुराने लोग बताते है कि आर्याव्रत में दूध-धी की नदियां बहती थीं, यानि देश में इनकी प्रचूरता था दूध और घी के भोजन का आधार था अब दूध और घी का प्रयोग सीमित होता जा रहा है ज्यादातर लोग चाय का प्रयोग करते हैं |
अंग्रेज कारोबारी इसको (English businessman)
चाय ब्रिटिश शासन में अंग्रेजों की देन है आरंभ में लोग चाय का प्रयोग नहीं करते थे इसको सेहत के लिए नुकसानदेह माना जाता था वहीं अंग्रेज कारोबारी इसको बड़े बिजनेस के रूप में स्थापित कर रहे थे ऐसे में चाय को एक लाभकारी और स्वास्थ्यवर्धक पेय के रूप में प्रस्तुत किया गया चाय के फायदे बताने वाले बोर्ड लगाए गए लोगों को चाय का बनाना भी सिंखाया गया |
यहां पर 1924 में (here in 1924)
हापुड़ जंक्शन रेलवे स्टेशन पर भूरेलाल एंड संस के नाम से चाय की पुरानी कैंटीन आज भी है यहां पर 1924 में ब्रिटिश शासन ने चाय बिक्री का लाइसेंस दिया था इनको ही अमरोहा रेलवे स्टेशन पर 1925 में दूसरा लाइसेंस दिया गया इन कैंटीन से चाय को आमजन में प्रस्तुत किया गया इससे पहले चाय का प्रयोग अंग्रेज और भारतीय अधिकारी ही करते थे |
62 वर्षीय पौत्र नन्हें सिंह कक्कड़ ने बताया (62 year old grandson Nanhe Singh Kakkar told)
कैंटीन से उत्तर प्रदेश के आमजन के लिए चाय का आरंभ किया गया भूरेलाल कक्कड़ के 62 वर्षीय पौत्र नन्हें सिंह कक्कड़ ने बताया उनके परिवार की दूसरी, तीसरी और चौथी पीढ़ी मिलकर आज भी कैंटीन का कारोबार संभाल रहे हैं रेलवे के पुरातत्व विभाग ने अब चाय के इन शिलापट को कब्जे में लेने की तैयारी की है उन्होंने केंटीन संचालक परिवार से संपर्क करके इन शिलापट को देने का आग्रह किया है |
रेलवे को संग्रालय में (Railway in museum)
जिससे शिलापट को रेलवे संग्रालय का हिस्सा बनाया जा सके नन्हें सिंह कक्कड़ ने बताया कि यह शिलापट हमारी कैंटीन को ब्रिटिश काल में दिए गए थे हमने इनको संभाल कर लगाया हुआ है रेलवे को संग्रालय में हमारे कैंटीन के नाम को भी शामिल करना होगा उसका लिखित अनुबंध होने पर ही शिलापट सौंपा जाएगा |
[banner id="981"]