प्रयागराज का महाकुंभ मेला भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, और इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी “वेणी माधव” के हाथों में होती है। वेणी माधव को माघ मेले का रक्षक माना जाता है, जो कल्पवासी (जो एक महीने तक गंगा के किनारे संयमित रहते हैं) और श्रद्धालुओं की सुरक्षा करते हैं। वेणी माधव, भगवान विष्णु के बाल स्वरूप के रूप में स्थापित हैं और उनकी पूजा माघ मेले की शुरुआत से पहले होती है।
पौराणिक मान्यता:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वेणी माधव का संबंध माघ मेले के इतिहास से बहुत पुराना है। माना जाता है कि संगम में सृष्टि का पहला यज्ञ हुआ था, जिसमें देवता और दानव दोनों शामिल हुए थे। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से इस मेले की रक्षा करने को कहा था, और तब से वेणी माधव यहाँ विराजमान हैं।
प्राचीन वेणी माधव मंदिर दारागंज के पास स्थित है, जहां कल्पवासी संगम स्नान के बाद भगवान वेणी माधव के दर्शन करने आते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, और गोस्वामी तुलसीदास ने भी इस मंदिर का उल्लेख किया है।
भगवान वेणी माधव के दर्शन के बिना कल्पवास अधूरा:
मान्यता है कि माघ मेले के दौरान भगवान वेणी माधव के दर्शन के बिना कल्पवास अधूरा माना जाता है। वेणी माधव की पूजा के बिना माघ मेले का पुण्य पूरा नहीं होता है। संगम स्नान के बाद भगवान वेणी माधव के दर्शन करने से पूर्ण पुण्य की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में शालिग्राम शिला से बनी वेणी माधव की प्रतिमा और त्रिवेणी की प्रतिमा भी है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखती है।
द्वादश माधव यात्रा और नगर भ्रमण:
माघ मेले से पहले वेणी माधव की नगर भ्रमण परंपरा है, जिसमें वेणी माधव को पूरे शहर में घुमाया जाता है। यह यात्रा द्वादश माधव यात्रा का हिस्सा होती है, जो भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों की पूजा करती है।
वेणी माधव की सुरक्षा और दर्शन से ही माघ मेले का आयोजन पुण्य से भरपूर माना जाता है।