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गुइलेन-बैरी सिंड्रोम (GBS) एक गंभीर और दुर्लभ बीमारी है, जो शरीर के इम्यून सिस्टम के नर्वस सिस्टम पर हमला करने से होती है। अगर कोई व्यक्ति अचानक कमजोरी महसूस करने लगे, हाथ-पैर सुन्न हो जाएं, या सांस लेने में परेशानी महसूस हो, तो यह संकेत हो सकता है कि वह GBS से ग्रसित है। इस बीमारी में शरीर की सांस लेने वाली मांसपेशियां प्रभावित हो सकती हैं, जिससे सांस लेने में कठिनाई हो सकती है और यह स्थिति जानलेवा हो सकती है।
GBS के प्रभाव से डायाफ्राम (सांस लेने की मुख्य मांसपेशी) कमजोर हो जाता है, जिससे शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और कार्बन डाइऑक्साइड जमा होने लगता है, जिसे टाइप 2 रेस्पिरेटरी फेल्योर कहा जाता है। इसके अलावा, जब मरीज खांसने में असमर्थ हो जाते हैं, तो फेफड़ों में बलगम जमा होने लगता है, जिससे न्यूमोनिया और संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
अगर किसी व्यक्ति में इस तरह के लक्षण दिखें तो तुरंत ऑक्सीजन लेवल चेक करना और डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है। हल्के मामलों में ऑक्सीजन सपोर्ट से राहत मिल सकती है, जबकि गंभीर मामलों में वेंटिलेटर या ट्रैकियोस्टॉमी की आवश्यकता हो सकती है।
फिजियोथेरेपी भी इस बीमारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे बलगम को बाहर निकाला जा सकता है और संक्रमण का खतरा कम होता है। सही समय पर इलाज से अधिकांश मरीज ठीक हो सकते हैं, हालांकि कुछ मामलों में हल्की कमजोरी रह सकती है।