उप्र निकाय चुनाव ने दिए संकेत- सांसदों के लिए आसान नहीं है लोकसभा चुनाव की राह
UP body elections indicated – the road to Lok Sabha elections is not easy for MPs
भाजपा ने निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास मानते हुए चुनाव लड़ा। चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सांसदों को सौंपी गई। सभी 17 नगर निगम में जीत मिली। कुछ जिला मुख्यालयों सहित कुल 91 नगर पालिका परिषद व 191 नगर पंचायतें भी पार्टी ने जीती है। 108 नगर पालिका परिषद और 353 नगर पंचायतों में भाजपा को हार का सामना भी करना पड़ा है।
निकाय चुनाव के जिलावार आंकड़े बता रहे हैं कि भाजपा के दिग्गज सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी को जीत नहीं दिला सके हैं। चुनाव परिणाम के बाद भाजपा प्रदेश मुख्यालय को मिल रहे फीडबैक में सामने आया है
कि कई जगह सांसदों के करीबियों ने बगावत कर पार्टी प्रत्याशी को चुनाव हराया। कई जगह तो सांसदों के करीबी ही बगावत कर मैदान में आ गए और सांसदों ने प्रत्याशी की जगह करीबी को जिताने का काम किया।
कई जगह अपने करीबी को मैदान से हटाने में नाकाम रहे और उसके बाद पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार में भी दिलचस्पी नहीं ली। जानकारों का मानना है कि निकाय चुनाव भले ही स्थानीय राजनीतिक और मुद्दों पर लड़ा जाता है लेकिन परिणाम का असर आगे तक रहता है।
लिहाजा भाजपा के सांसदों को निकाय चुनाव के नतीजों से सबक लेते हुए लोस चुनाव से पहले कील कांटे दुरुस्त करने होंगे।
केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी के निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े महराजगंज जिले की आठ में तीन नगर पंचायतें भाजपा ने जीती हैं। जबकि दोनों नगर पालिका परिषद में भाजपा हारी है। केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के मुजफ्फरनगर जिले की आठ नगर पंचायतों में से एक भी भाजपा नहीं जीती है। दो नगर पालिका में से केवल एक मुजफ्फरनगर नगर पालिका जीती है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की एक नगर पालिका परिषद भाजपा हारी है। नौ में से पांच नगर पंचायतें भाजपा ने जीती है।
हापुड़ में भी मिली हार : मेरठ सांसद राजेंद्र अग्रवाल के क्षेत्र की हापुड़ सदर नगर पालिका सीट बसपा ने जीत ली।
प्रवीण निषाद के क्षेत्र में भी हार : निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के सांसद पुत्र प्रवीण निषाद के क्षेत्र की नगर पालिका परिषद खलीलाबाद और नगर पंचायत मगहर में भाजपा की हार हुई।
चिंता की लकीरें…
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे राजबीर सिंह के निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े एटा जिले की छह में से मात्र एक अवागढ़ नगर पंचायत भाजपा ने जीती है। हालांकि चार नगर पालिका में से एटा और अलीगंज में भाजपा जीती है।
सत्यपाल भी नहीं दिखा सके कमाल– सांसद सत्यपाल सिंह के निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े बागपत जिले की सभी छह नगर पंचायतें भाजपा हारी है। तीन नगर पालिका परिषद में से केवल एकमात्र खेकड़ा नगर पालिका में भाजपा जीती है।
साक्षी महाराज भी नहीं बचा सके सीटें– तेजतर्रार सांसद साक्षी महाराज के निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े उन्नाव जिले में 16 में से केवल तीन नगर पंचायत, तीन नगर पालिका परिषद में से केवल एक उन्नाव नगर पालिका परिषद भाजपा जीती है।
इटावा में हो गया सफाया– पूर्व मंत्री, एससी आयोग के पूर्व अध्यक्ष व इटावा के सांसद रामशंकर कठेरिया के निर्वाचन क्षेत्र के जिले इटावा में तीन नगर पालिका परिषद और तीन नगर पंचायतों में एक भी जगह जीत नहीं मिली है। भाजपा सांसद मुकेश राजपूत के क्षेत्र के जिले फर्रुखाबाद में सात में दो नगर पंचायत भाजपा ने जीती हैं। जबकि दोनों नगर पालिका परिषद में भाजपा की हार हुई है।
चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सांसदों को सौंपी गई
भाजपा ने निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास मानते हुए चुनाव लड़ा। चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सांसदों को सौंपी गई। सभी 17 नगर निगम में जीत मिली। कुछ जिला मुख्यालयों सहित कुल 91 नगर पालिका परिषद व 191 नगर पंचायतें भी पार्टी ने जीती है। 108 नगर पालिका परिषद और 353 नगर पंचायतों में भाजपा को हार का सामना भी करना पड़ा है।
निकाय चुनाव के जिलावार आंकड़े बता रहे हैं कि भाजपा के दिग्गज सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी को जीत नहीं दिला सके हैं। चुनाव परिणाम के बाद भाजपा प्रदेश मुख्यालय को मिल रहे फीडबैक में सामने आया है कि कई जगह सांसदों के करीबियों ने बगावत कर पार्टी प्रत्याशी को चुनाव हराया। कई जगह तो सांसदों के करीबी ही बगावत कर मैदान में आ गए और सांसदों ने प्रत्याशी की जगह करीबी को जिताने का काम किया।
कई जगह अपने करीबी को मैदान से हटाने में नाकाम रहे और उसके बाद पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार में भी दिलचस्पी नहीं ली। जानकारों का मानना है कि निकाय चुनाव भले ही स्थानीय राजनीतिक और मुद्दों पर लड़ा जाता है लेकिन परिणाम का असर आगे तक रहता है। लिहाजा भाजपा के सांसदों को निकाय चुनाव के नतीजों से सबक लेते हुए लोस चुनाव से पहले कील कांटे दुरुस्त करने होंगे।
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