97 वें बलिदान दिवस पर पं.रामप्रसाद बिस्मिल को दी श्रद्धांजलि

97 वें बलिदान दिवस पर पं.रामप्रसाद बिस्मिल को दी श्रद्धांजलि
गाजियाबाद, 19 दिसंबर 2024: केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में महान क्रांतिकारी पं. रामप्रसाद बिस्मिल के 97वें बलिदान दिवस पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन में परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य, प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य, राष्ट्रीय महामंत्री महेन्द्र भाई, और अन्य प्रमुख व्यक्तियों ने पं. बिस्मिल के बलिदान और योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य का संबोधन:
राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि पं. रामप्रसाद बिस्मिल युवा शक्ति के प्रेरणा स्रोत और क्रांतिकारियों के सिरमौर थे। उन्होंने आर्य समाज और महर्षि दयानंद सरस्वती से प्रेरणा लेकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन उनके जीवन में परिवर्तन का कारण बना और उन्होंने इसे अपनी प्रेरणा का केंद्र बनाया। उनके नेतृत्व में काकोरी कांड जैसे ऐतिहासिक प्रयासों ने स्वतंत्रता संग्राम को गति दी।
प्रवीण आर्य की श्रद्धांजलि:
प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य ने कहा कि पं. रामप्रसाद बिस्मिल सभी क्रांतिकारियों के गुरु और स्वतंत्रता संग्राम के गरम दल के जनक थे। शाहजहांपुर के आर्य समाज में स्वामी सोमदेव के प्रवचनों ने उन्हें क्रांति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। बिस्मिल ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया, बल्कि उन्होंने युवाओं को नशे और अन्य बुराइयों से दूर रहने की प्रेरणा भी दी।
महेंद्र भाई और अन्य वक्ताओं के विचार:
राष्ट्रीय महामंत्री महेन्द्र भाई ने कहा कि शहीद देश की अमानत होते हैं। समय-समय पर उन्हें याद करना और उनके बलिदानों से प्रेरणा लेना आवश्यक है। उन्होंने बिस्मिल की रचनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके द्वारा लिखा गया गीत, “तेरा वैभव अमर रहे मां”, हर भारतीय को प्रेरणा देता है।
बिस्मिल का साहित्य और योगदान:
मुख्य अतिथि कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि पं. बिस्मिल न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि एक महान शायर भी थे। उनका अमर गीत “सरफरोशी की तमन्ना” आज भी हर क्रांतिकारी की जुबान पर है। फांसी से तीन दिन पहले जेल में लिखी गई उनकी आत्मकथा युवाओं के लिए प्रेरणादायक है।
निष्कर्ष:
गोष्ठी में सभी वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि पं. रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रेरक प्रकाशपुंज है। उनके बलिदान और योगदान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना और उन्हें सही सम्मान देना आज की आवश्यकता है।