महाकुंभ 2025-साढ़े पांच सौ साल बाद दिगंबर अनी अखाड़े में लोकतांत्रिक बदलाव, पदाधिकारियों का कार्यकाल हुआ तय
Maha Kumbh 2025- After five and a half hundred years, democratic change in Digambar Ani Akhara, tenure of office bearers decided
मुख्य बिंदु:
550 साल पुरानी परंपरा में बदलाव:
दिगंबर अनी अखाड़े ने पहली बार लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाते हुए अपने सभी प्रमुख पदाधिकारियों का कार्यकाल 12 साल के लिए तय किया।
पहले, पदाधिकारी आजीवन अपने पद पर बने रहते थे।
चुनाव प्रक्रिया और नई कार्यकारिणी:
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष और महंत पदों के लिए चुनाव आयोजित किए गए।
चुने गए पदाधिकारी:
राष्ट्रीय अध्यक्ष: वैष्णव दास (अयोध्या)
महामंत्री: बलराम दास (उज्जैन)
मंत्री: जानकी दास (फरीदाबाद)
पुजारी: सीताराम दास (छत्तीसगढ़)
यह सभी पदाधिकारी आम सहमति से चुने गए और 12 वर्षों तक अखाड़े की बागडोर संभालेंगे।
अगला चुनाव 2037 के प्रयागराज कुंभ में होगा।
पहले की परंपरा:
दिगंबर अनी अखाड़े में पदाधिकारी आजीवन अपने पद पर बने रहते थे।
केवल मृत्यु या किसी अन्य कारण से पद खाली होने पर ही नए पदाधिकारी चुने जाते थे।
यह परंपरा 1475 से चली आ रही थी।
दिगंबर अनी अखाड़े की स्थापना और परंपरा:
अखाड़े की स्थापना 1475 में स्वामी बालानंदाचार्य ने की थी।
धर्मध्वजा में पांच रंग (लाल, पीला, हरा, सफेद, और काला) विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ईष्टदेव हनुमान जी हैं।
साधु-महंत राम और कृष्ण की उपासना करते हैं और सफेद वस्त्र एवं त्रिपुंड धारण करते हैं।
अखाड़े की संपत्ति और महत्व:
अखाड़े की देशभर में छह बैठकें (अयोध्या, पुरी, नासिक, चित्रकूट, उज्जैन, और वृंदावन) हैं।
लाखों साधु-महात्मा और करोड़ों श्रद्धालु इससे जुड़े हैं।
अखाड़े के नियंत्रण में कई मठ-मंदिर, खेती योग्य जमीन, और अरबों की संपत्ति है।
महत्व:
550 साल बाद दिगंबर अनी अखाड़े में हुआ यह बदलाव ऐतिहासिक है। यह कदम पारंपरिक धार्मिक संस्थानों में लोकतांत्रिक मूल्यों और संगठनात्मक बदलावों की एक मिसाल पेश करता है। इससे अखाड़े के संचालन और जिम्मेदारियों में पारदर्शिता बढ़ेगी और यह अन्य धार्मिक संगठनों के लिए भी प्रेरणादायक हो सकता है।