MahaKumbh- यह भूले भटकों का शिविर-79 साल में भोपू से एआई का सफर; बिछड़े लोगों को मिलाती हैं ये दो संस्थाएं
Maha Kumbh- This camp for lost souls- A journey from Bhopu to AI in 79 years; These two organizations reunite lost souls
महाकुंभ में भूले-भटके लोगों के मिलाने का काम पिछले 79 सालों से लगातार जारी है, और यह एक विकसित तकनीकी सफर का हिस्सा बन चुका है। पहले भोपू (लाउडस्पीकर) का इस्तेमाल कर भटके हुए लोगों को उनके परिवार से मिलाने का काम शुरू हुआ था, और अब इस कार्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का भी सहारा लिया जा रहा है।
इतिहास और शुरुआत:
1946 में शुरुआत:
जब राजाराम तिवारी ने माघ मेले में एक भटकी हुई महिला को उसके परिवार से मिलाया, तब इस पहल की शुरुआत हुई थी। इसके बाद से भारत सेवा दल ने इस काम को लगातार जारी रखा।
79 साल बाद, तीसरी पीढ़ी का योगदान:
अब उमेश चंद्र तिवारी और उनकी तीसरी पीढ़ी इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं।
14 लाख लोग अब तक परिवारों से मिलाए जा चुके हैं।
नवीनतम तकनीक और प्रभाव:
AI और मोबाइल का उपयोग:
पहले भोपू के जरिए भटके हुए लोगों की आवाज़ सुनाई जाती थी, जबकि अब AI का उपयोग करके ट्रैकिंग सिस्टम और मोबाइल ऐप्स की मदद से लोगों को उनके परिजनों से जोड़ा जाता है।
इसके अलावा, अब गुमशुदा लोगों को ढूंढने में अधिक सहूलियत होती है, क्योंकि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के जरिए जानकारी फैलाना आसान हो गया है।
हेमवती नंदन बहुगुणा स्मृति संस्था का योगदान:
1954 की भगदड़:
कुंभ के दौरान 1954 में हुई भगदड़ के बाद, बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे लापता हो गए थे। इंदिरा गांधी के आह्वान पर हेमवती नंदन बहुगुणा स्मृति संस्था की शुरुआत हुई।
इस संस्था ने महिलाओं और बच्चों को उनके परिवार से मिलाने में अहम भूमिका निभाई, और आज भी यह कार्य जारी है।
2019 में रिकॉर्ड:
2019 में सबसे अधिक 35,000 महिलाओं और बच्चों को उनके परिवार से मिलाया गया।
आज की तारीख में, इन दोनों संस्थाओं के सहयोग से, महाकुंभ के दौरान 700 से अधिक लोग अब तक भटके हुए पाए गए हैं और उनके परिवार से मिलाया गया है।
यह पूरी पहल महाकुंभ के दौरान सामाजिक सुरक्षा और सेवाओं का एक बेहतरीन उदाहरण पेश करती है, जिसमें तकनीकी विकास और समाजसेवी संस्थाओं का सहयोग देखने को मिलता है।