Sambhal News- चंदौसी के लक्ष्मणगंज में भी मिला 152 साल पुराना खंडहरनुमा मंदिर
Krishan Sharma
December 18, 2024
1 min read
Sambhal News- चंदौसी के लक्ष्मणगंज में भी मिला 152 साल पुराना खंडहरनुमा मंदिर
उत्तर प्रदेश के संभल जिले के चंदौसी क्षेत्र में 152 साल पुराना बांके बिहारी मंदिर खंडहर की स्थिति में मिला है। यह मंदिर मुस्लिम बहुल लक्ष्मणगंज मोहल्ले में स्थित है, जहां हिंदुओं के पलायन के बाद इसका रखरखाव बंद हो गया।
मंदिर का इतिहास और वर्तमान स्थिति
- मंदिर का ऐतिहासिक महत्व:
- 152 साल पुराना बांके बिहारी मंदिर चंदौसी के लक्ष्मणगंज मोहल्ले में स्थित है।
- यह क्षेत्र कभी हिंदू बहुल था, लेकिन समय के साथ मुस्लिम आबादी बढ़ने के कारण हिंदुओं का पलायन शुरू हो गया।
- 25 साल पहले तक इस मंदिर में नियमित रूप से पूजा-अर्चना होती थी।
- खंडित मूर्तियां और उपेक्षा:
- 2010 में शरारती तत्वों द्वारा मंदिर में भगवान बांके बिहारी, शिवलिंग और अन्य मूर्तियों को खंडित कर दिया गया।
- इस घटना के बाद पुलिस कार्रवाई तो हुई, लेकिन मंदिर के पुनर्निर्माण या देखभाल पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
- धीरे-धीरे मंदिर की मूल संरचना क्षतिग्रस्त हो गई।
- वर्तमान में मंदिर खंडहर में बदल गया है और मूर्तियों के स्थान पर केवल निशान शेष हैं।
- मंदिर के खंडहर बनने का कारण:
- हिंदू समाज के पलायन के बाद मंदिर की देखभाल पूरी तरह से बंद हो गई।
- मुस्लिम बहुल क्षेत्र में मंदिर के प्रति उपेक्षा और शरारती घटनाओं के कारण इसका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता गया।
स्थानीय प्रतिक्रिया और प्रशासनिक पहल
- मंदिर के संरक्षक का बयान:
- कृष्ण कुमार, जो पहले मंदिर के संरक्षक थे, ने बताया कि 2010 तक मंदिर में पूजा होती थी।
- मूर्तियां खंडित होने और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण मंदिर खंडहर में तब्दील हो गया।
- स्थानीय प्रशासन का रुख:
- मंदिर के खंडहरनुमा स्थिति में मिलने के बाद प्रशासन और हिंदू संगठनों से पुनर्निर्माण की मांग की जा रही है।
- अभी तक इस मामले में कोई ठोस योजना सामने नहीं आई है।
- क्षेत्रीय बदलाव:
- लक्ष्मणगंज का नाम भले ही सनातन परंपरा से जुड़ा हो, लेकिन वर्तमान में यह पूरी तरह मुस्लिम बहुल क्षेत्र बन गया है।
- यह बदलाव यहां की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर गहरा असर डालता है।
निष्कर्ष
152 साल पुराना बांके बिहारी मंदिर अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत को खोने की कगार पर है। मंदिर को पुनः संरक्षित और पुनर्निर्मित करना केवल धार्मिक आस्था का सवाल नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का प्रयास भी है। इसके लिए प्रशासन और समाज को मिलकर कदम उठाने होंगे, ताकि इस मंदिर को फिर से जीवंत किया जा सके।
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