(www.hapurhulchul.com) राहुल गांधी को विपक्ष का नेता चुन लिया गया है | कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के घर पर हुई इंडिया गठबंधन की बैठक में ये फैसला हुआ है कि 10 साल बाद ये मौका आया है, जब विपक्ष के नेता की कुर्सी खाली नहीं रहेगी | राहुल गांधी को सरकार यानी पीएम मोदी के सामने से बड़ी पावर मिल गई है, क्योंकि नेता प्रतिपक्ष को कई अधिकार मिलते हैं और यह पद काफी शक्तिशाली होता है | अगर राहुल गांधी इस पद को ना लेते तो एक बड़ी राजनीतिक चूक कर जाते |
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को (Leader of Opposition in Lok Sabha)
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को सदन के नेता यानी प्रधानमंत्री के बराबर ही तरजीह मिलती है | नेता प्रतिपक्ष का दर्जा एक कैबिनेट मंत्री के बराबर होता है | कैबिनेट मंत्री की तरह ही नेता प्रतिपक्ष को सैलरी, अन्य भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं | नेता प्रतिपक्ष को हर महीने 3.30 लाख रुपये, एक हजार का सत्कार भत्ता, कैबिनेट मंत्री के लेवल का घर, कार और ड्राइवर के अलावा सुरक्षा सुविधाएं मिलती हैं | इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष को करीब 14 स्टाफ भी मिलते हैं, जिसका पूरा खर्च सरकार उठाती है |
इसके साथ ही अगर सदन में कई सदस्य (Besides this, if many members in the House)
सदन के भीत नेता सदन यानी प्रधानमंत्री की तरह ही नेता प्रतिपक्ष के बोलने की कोई समय सीमा नहीं होती | इसके साथ ही अगर सदन में कई सदस्य अलग-अलग बातें बोल रहे हों या हंगामा कर रहे हो, लेकिन इस दौरान नेता प्रतिपक्ष खड़े हो जाएं तो स्पीकर बाकी सबको अनसुना कर नेता प्रतिपक्ष को हस्तक्षेप करने की अनुमति देते हैं | जबकि बाकी सदस्य ऐसा नहीं कर सकते हैं |
सदन के भीतर प्रतिपक्ष के अगली और दूसरी लाइन में (In the front and second line of opposition within the House)
इसके साथ ही सदन के भीतर प्रतिपक्ष के अगली और दूसरी लाइन में कौन-कौन बैठेगा, इस बारे में भी नेता प्रतिपक्ष से राय ली जाती है | नेता प्रतिपक्ष को चुनाव आयुक्तों, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग, सीवीसी और सीबीआई के प्रमुखों की नियुक्ति करने वाली कमेटी में शामिल किया जाता है | आमतौर पर नेता प्रतिपक्ष को ही लोकसभा की लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बनाया जाता है और इस समिति के पास पीएम तक को तलब करने का अधिकार होता है |
इस वजह से नेता प्रतिपक्ष का पद (Because of this, the post of Leader of Opposition)
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए किसी पार्टी के पास 10 प्रतिशत यानी 55 सीटें चाहिए, लेकिन साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में किसी की पार्टी को इतनी संख्या नहीं मिली थी | इस वजह से नेता प्रतिपक्ष का पद 10 सालों तक खाली रहा था | 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत दर्ज की थी और मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस संसदीय दल के नेता थे, लेकिन उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं था | 2019 के चुनाव में 52 सीट जीतने वाले कांग्रेस के संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी चुने गए थे, लेकि उन्हें भी नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला था |
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