तीसरी आंख ने जगाई उम्मीद तो खबरियों से टूट गया पुलिस का नाता
When the third eye raised hopes, the police broke its ties with the newsmen
Hapur crime news:-एक जमाना था, जब पुलिस के पास मुखबिरों की लंबी सूची हुआ करती थी । पुलिस के आला अफसर इन्हें अपने नेटवर्क से जोड़कर रखते थे और उनके भरोसे चोरी की वारदातों से लेकर मर्डर, लूट व डकैती के बड़े से बड़ा मामलों पर से पर्दा उठाने में अपना सहयोग देते थे और जिनके कारण कातिल व लुटेरे सलाखों के पीछे पहुंच जाते थे। पर, अब तो पुलिस हर केस का तकनीकी जांच और सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के आधार पर उद्भेदन करने का दावा करती है। यह सिर्फ कुछ केसों में ही काम आते हैं।
अब तो फुटेज से लेकर डंप डाटा तक पुलिस के पास है, लेकिन केस का पर्दाफाश नहीं हो पा रहा है। तकनीकी जांच और कैमरे के चक्कर में पुलिस ने भी मुखबिरों से नाता तोड़ दिया है। कमजोर मुखबिरी की वजह से पुलिस के सूचना मंत्र की पोल भी लगातार खुल रही है।
फुटेज काम नहीं आ रहा, मोबाइल का इस्तेमाल नहीं
ताजा मामला जनपद हापुड़ शहर में चोरियों का है। पिछले डेढ़ से दो माह में लाखों रुपये से अधिक की चोरियां हो चुकी हैं। पुलिस जिनके भरोसे केस उद्भेदन का दावा करती है, वह फुटेज भी हर वारदात में मिले हैं। लेकिन, किसी भी गैंग की पहचान नहीं हो सकी। यहां तक कि पुलिस रात में अपने थाना क्षेत्र में पहरेदारी भी कर रही है, बावजूद इसके चोर अपना काम बखूबी कर जा रहे हैं।
कौन संदिग्ध रेकी कर रहा है, चोर मोहल्ले में घूम रहे हैं, इसकी सूचना तक पुलिस को नहीं मिल पा रही है। थक-हारकार अब पुलिस चोर पकड़ने के बजाय अन्य कहीं चोरी न हो जाए, इसे बचाने में जुटी है। यहां तक कि चोर वारदात के समय मोबाइल का भी इस्तेमाल नहीं कर रहे, ताकि पुलिस डंप डाटा निकालकर ही उनकी लोकेशन निकाल सके। फुटेज काम नहीं आ रहा और तकनीकी जांच के लिए चोर कोई सुबूत नहीं छोड़ रहे हैं। मुखबिरों पर एतबार नहीं कायम कर सकी।
मुखबिरों को खाकी पर नही भरोसा
मुखबिरों को खाकी वर्दी वाले पुलिस पर भरोसा नहीं । कारण यह कि कई मुखबिरों ने अगर पुलिस को जानकारी दे दी तो वह लीक हो जाती है। सूत्रों की मानें तो इसमें पुलिस के ही कुछ लोग शामिल हैं, जो बाद में उस गैंग को खबर कर देते हैं। ऐसे में उनकी जान पर आफत आ जाती है।
ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें मुखबिरी के शक पर हत्या कर दी जाती है। मुखबिरो की माने तो पुलिस को सूचना देने से पहले यह लोग निश्चिंत होना चाहते हैं कि विश्वास पूरा हो और सूचना लीक न हो। लेकिन, ऐसा करने में पुलिस नाकाम रही है। कुछ सालों तक तो पुलिस काफी सतर्क रही, जबकि तब आज की तरह टेक्नोलॉजी नहीं थी।
नेटवर्क की मजबूती के लिए पुलिस ने कई तरह की योजना बनाई। क्विक मोबाइल सिस्टम बना,हर एक इलाके तक इनकी पहुंच हुई, लेकिन थाने की पुलिस को इनका फायदा कम शिकायतें अधिक मिलने लगीं। फिर पूर्व एसपी द्वारा हर वार्ड में जवानों का मोबाइल नंबर शेयर करने के साथ उन्हें एक ही इलाके में रहकर लोगों से संपर्क बढ़ा वार्ड पुलिसिंग शुरू की। पुलिसिंग शुरू तो हुई, पर वह काम नहीं आ सकी।
तैयार करनी पड़ती है मुखबिरों की टीम
एक पुलिस अधिकारी की मानें तो पहले पुलिस मुखबिर तैयार करती थी। इन मुखबिरों को जोड़ने के लिए उन पर विश्वास के साथ आर्म्स से लेकर जेब खर्च भी देना पड़ता था। पूर्व में ऐसा कई अफसर कर चुके हैं। यहां तक कि जेल और जेल के बाहर भी कई अपराधियों से संपर्क हुआ करता था।
क्या कहते है पुलिस के जिम्मेदार
एसपी अभिषेक वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि,अधिकांश वारदातों में फुटेज,नई तकनियों से जांच और मुखबिर की सूचना पर केस का उद्भेदन किया गया है।
हाल में लूट, हत्या व डकैती की कई घटनाओं का पर्दाफाश किया गया है। सूचनाएं मिलती रहती हैं। अक्सर उससे मदद भी मिलती है। सूचना तंत्र को और मजबूत किया जा रहा है।
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