

महाकुंभ मेले के दौरान दंडी संन्यासियों का विशेष स्थान है। यह परंपरा सनातन धर्म की अत्यंत गहरी और सम्मानित आध्यात्मिक परंपरा है, जिसमें संन्यासी अपने जीवन को पूर्ण रूप से धर्म और साधना के प्रति समर्पित करते हैं। दंडी संन्यासी की पहचान उनके दंड से होती है, जो उनकी और परमात्मा के बीच का प्रतीक है। यह दंड उन्हें आत्मा के आध्यात्मिक विकास और ईश्वर के प्रति समर्पण की ओर ले जाता है।
दंडी संन्यासी का दंड आत्मा के आध्यात्मिक प्रगति का प्रतीक है, जिसमें संन्यासी ईश्वर से जुड़ता है और अपनी साधना के प्रति पूर्ण समर्पण करता है।
यह परंपरा न केवल धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा दिखाती है, बल्कि आध्यात्मिकता के रास्ते पर चलते हुए समाज और राष्ट्रहित के लिए समर्पित जीवन की दिशा भी देती है।