हापुड़ के डीएम अभिषेक पांडे की जनसेवा और जवाबदेही का उदाहरण
हापुड़, उत्तर प्रदेश:
जिला हापुड़ में नायक की तरह उभरे जिलाधिकारी अभिषेक पांडे ने प्रशासनिक कार्यशैली को केवल दफ्तरों तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि जनता के बीच जाकर, ज़मीन पर खड़े होकर समस्याएं सुनना और समाधान कराना उनकी पहचान बन चुकी है। उनकी कार्यशैली ने यह साबित किया है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो प्रशासन जनसंवेदनशील और जवाबदेह बन सकता है।
जनता दरबार — अब औपचारिकता नहीं, समाधान की जगह
डीएम अभिषेक पांडे का जनता दरबार अब एक “कागज़ी रस्म” नहीं, बल्कि वास्तविक राहत देने वाला मंच बन चुका है।
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यहाँ किसी फरियादी को लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ता।
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चाहे एक शिकायतकर्ता हो या पचास, डीएम स्वयं बैठाकर उनकी बात सुनते हैं।
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तुरंत संबंधित अधिकारी से फोन या वीडियो कॉल पर वार्ता कर वहीं समाधान कराया जाता है।
रिश्वत के आरोप पर संवेदनशील कार्यवाही
हाल ही में एक जनचौपाल के दौरान एक ग्रामीण ने एक लेखपाल पर रिश्वत का आरोप लगाया। डीएम ने:
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कानून सम्मत प्रक्रिया अपनाते हुए नोटिस जारी किया।
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दुर्भाग्यवश, लेखपाल ने मानसिक दबाव में जहरीला पदार्थ खा लिया।
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डीएम ने तुरंत चिकित्सा सुविधा और पारिवारिक सहायता के निर्देश दिए।
लेखपाल की मृत्यु के बाद जब चकबंदी लेखपाल संघ ने धरना प्रदर्शन किया, तो डीएम:
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खुद संघ से संवाद के लिए आगे आए,
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धरनास्थल से प्रतिनिधियों को बुलाकर बैठक की,
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और हर वैध मांग पर निष्पक्ष कार्रवाई का आश्वासन दिया।
प्रश्नचिह्न या नेतृत्व का परिचय?
अब समाज और सिस्टम के सामने सवाल खड़ा होता है:
जब कोई अधिकारी कानून का पालन करता है, पारदर्शिता बरतता है और जनता की आवाज़ बनता है, तो क्या उसी को कठघरे में खड़ा करना उचित है?
क्या रिश्वत की शिकायत का संज्ञान लेना, और विधिक प्रक्रिया शुरू करना, एक जिम्मेदार अफसर का फर्ज़ नहीं है?
निष्कर्ष — एक संवेदनशील और जवाबदेह प्रशासन की मिसाल
डीएम अभिषेक पांडे ने यह उदाहरण पेश किया है कि कठिन परिस्थितियों में भी कैसे नेतृत्व दिखाया जाता है, संवेदनशीलता बरती जाती है, और सिस्टम को जवाबदेह बनाया जाता है।