मंदिर-मस्जिद और मठों पर बयान, किसका कितना नफा-नुकसान
कभी ज्ञानवापी तो कभी केदारनाथ-बद्रीनाथ पर बयान देश-प्रदेश में राजनीतिक लहरें पैदा कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले इस तरह की गर्माहट किसे और कितना नफा-नुकसान करेगी, यह तो भविष्य ही साफ करेगा। लेकिन, राजनीतिक विश्लेषक इसे लोकसभा चुनाव से पहले मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिशों के तौर पर ले रहे हैं। उन्हें आशंका है कि इन हलचल के तले चुनाव में कहीं रोजी-रोटी, रोजगार और बदलाव के असली मुद्दे न दब जाएं।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी पर मुस्लिम समाज से भूल स्वीकार करने की अपेक्षा की है। इसे सत्ताधारी दल की सोची-समझी रणनीति के तहत दिया गया बयान माना जा रहा है। वहीं, मुख्य विपक्षी दल सपा भी इस तरह के बयान देने में पीछे नहीं है। उसके राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा को गढ़े मुर्दे न उखाड़ने की नसीहत दे रहे हैं। उनकी चेतावनी है कि अगर हर मस्जिद में मंदिर ढूंढोगे तो केदानाथ-बद्रीनाथ समेत हर धाम-मंदिर में बौद्ध मठ ढूंढा जाएगा।
जेएनयू के शिक्षक रहे और समकालीन यूपी के राजनीतिक मामलों के विश्लेषक प्रो. रवि श्रीवास्तव कहते हैं कि किसी भी इमारत की उम्र 100-150 साल ही होती है। हर मुल्क में पुराने धार्मिक स्थलों के खंडहरों पर नए उदित धर्मों या दूसरे धर्मों के मानने वालों ने अपनी मान्यता के अनुसार पूजा स्थल के रूप में भवन तैयार कराए। भारत में भी ऐसा हुआ, लेकिन यह विषय इतिहासकारों के बीच या अकादमिक बहस तक ही सीमित रहते तो समाज के लिए बेहतर रहते।
प्रो. श्रीवास्तव का कहना है कि उत्तर प्रदेश में उस तरह का कभी दलित मूवमेंट नहीं रहा, जैसाकि महाराष्ट्र में रहा। इसलिए स्वामी प्रसाद का बौद्ध मठों को लेकर दिया गया बयान राजनीतिक रूप से कोई फायदा पहुंचा पाएगा, इसमें संशय है। लेकिन, इस तरह के बयान भाजपा की राजनीति को हवा-पानी और खुराक मुहैया कराते हैं। धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगा और फिलहाल यूपी में जातिगत ध्रुवीकरण या इस आधार पर कोई मूवमेंट खड़ा होता नहीं दिख रहा है।