
स्थान: नाहरी, जिला सोनीपत (हरियाणा)
गंतव्य: हरिद्वार से जल लेकर कांवड़ लाना
समय: कांवड़ यात्रा 2025
“बस मेरे पापा ठीक हो जाएं भोलेनाथ, मैं अपना सब कुछ आपके चरणों में अर्पित कर दूंगा।”
यह कोई साधारण वाक्य नहीं, यह एक बेटे की करुण पुकार, संकल्प और तपस्या की कहानी है।
हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव निवासी दीपक आज हर किसी के लिए भक्ति और प्रेम का प्रतीक बन गए हैं। दीपक के पिता कुछ समय पहले दिल्ली के नरेला के एक अस्पताल में गंभीर हालत में भर्ती थे। डॉक्टरों ने कह दिया था – “उम्मीद बहुत कम है।”
लेकिन दीपक ने हार नहीं मानी। दवाओं के बाद जब कोई रास्ता न बचा, तब उसने आसरा लिया भोलेनाथ का। उसने मन में संकल्प लिया कि –
“अगर मेरे पापा ठीक हो गए, तो मैं हरिद्वार से कांवड़ लाऊंगा… लेकिन चलकर नहीं, बल्कि हर कदम जमीन पर लोटकर।”
आज दीपक हरिद्वार से अपनी देह को कष्ट देकर, जमीन पर लोटते हुए हर कदम पर कांवड़ लेकर चल रहा है। सिर पर कांवड़, पीठ पर श्रद्धा, और मन में सिर्फ एक नाम – भोलेनाथ।
यह दृश्य देख राह चलते लोग उसके माथे से गिरते पसीने को आस्था का अमृत कह रहे हैं। उसकी यात्रा भले धीमी हो, लेकिन संकल्प अडिग है।
“दीपक की भक्ति ने साबित किया कि भगवान सिर्फ पूजा से नहीं, भावना से प्रसन्न होते हैं।”
“ऐसी आस्था आज के समय में विरली है। यह देखकर आंखें नम हो जाती हैं।”
दीपक की यात्रा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। श्रद्धालु रास्तों में उसे जल, फल, और आशीर्वाद देकर आगे बढ़ा रहे हैं।
कांवड़ यात्रा का यह दृश्य केवल धार्मिक यात्रा नहीं, यह “पुत्र धर्म”, “श्रद्धा” और “संकल्प शक्ति” की एक ऐसी गाथा है जो सदियों तक सुनाई जा सकती है।