

Mahakumbh 2025- अठखेलियां, शैतानी व खुद को भूलकर किया जाने वाला आलिंगन, जब एक नागा की ‘मां’ से होती है मुलाकात
महाकुंभ 2025 का रहस्य: नागा संन्यासी का ‘मां’ से मुलाकात
महाकुंभ के दौरान कई रहस्यों और अध्यात्म की गहराईयों से जुड़े अनोखे क्षण देखने को मिलते हैं। यह मेला न केवल आध्यात्मिक शक्ति की गहरी झलक पेश करता है, बल्कि यहां आस्था, भावनाओं, त्याग और आत्मिक खोज का अद्वितीय संगम होता है। इस बार भी ऐसा ही एक अनूठा और भावुक पल देखने को मिला, जब एक नागा संन्यासी की अपनी ‘मां’ से मुलाकात हुई।
नागा संन्यासी सनातन धर्म के प्रतीक होते हैं, जो खुद के प्रति त्याग, समाधि और साधना के मार्ग पर चलने वाले होते हैं। उनके जीवन का लक्ष्य होता है सनातन धर्म की रक्षा और इसे जीने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। नागाओं के जीवन का लक्ष्य होता है अनंतता के लिए समर्पण—इसलिए वे ना केवल अपने सुख-संसार का त्याग करते हैं, बल्कि अपने शरीर को भी समर्पित कर देते हैं।
हर बार जब ये नागा संन्यासी शाही स्नान के दौरान गंगा नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं, तो अचानक उनके भाव में बदलाव देखने को मिलता है। उनकी आंखों में एक अद्भुत भाव आता है—एक ओर वो आत्मा की गहराई में खो जाते हैं, वहीं दूसरी ओर उनका ध्यान मां की ओर चला जाता है। ये ऐसे पल होते हैं, जो नागाओं के जीवन के आध्यात्मिक चरम को उजागर करते हैं।
इस विषय को समझने के लिए जब मैंने अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती से बातचीत की, उन्होंने बताया कि “नागा संन्यासी जब गंगा के किनारे पहुंचते हैं, तो उनका ध्यान अपने पूर्वजों, अपनी जड़ों और विशेष रूप से अपनी मां की ओर चला जाता है। उनके लिए यह शाही स्नान केवल शरीर को शुद्ध करने का अवसर नहीं होता, बल्कि आत्मा को भी पूर्ण शुद्धता की ओर ले जाने का एक माध्यम होता है।”
महाकुंभ के इस खास मौके पर जो दृश्य सामने आया, वह केवल दृश्यात्मकता तक सीमित नहीं था। यह वो क्षण था जब एक नागा संन्यासी ने अपने जीवन के सभी कर्म-काण्डों को भुलाकर, पूरी तरह से अपने हृदय के अंतरतम गहरे एहसास को मां की ओर नत किया। यहां आध्यात्म की पराकाष्ठा का अनुभव होता है, जहां भौतिकता विलीन हो जाती है और केवल आत्मा ही नजर आती है।
महाकुंभ का ये मेला केवल आस्था और भक्ति का केंद्र नहीं होता, बल्कि यहां जीवन के गहरे रहस्यों को भी जाना जाता है। नागा संन्यासी जैसे साधक, जो अपनी साधना में लीन रहते हैं, वो इस दौरान उन रहस्यों को भी उजागर करते हैं, जो सामान्य लोगों की पहुंच से बाहर होते हैं।
इस बार भी महाकुंभ का यह आयोजन एक ऐसा पवित्र अवसर साबित हुआ, जहां आस्था, त्याग, समर्पण और आत्मा की खोज एक साथ मिलकर एक अद्वितीय अनुभव को पेश करती है।