(www.hapurhulchul.com) भारत में हिंदी को उसका अधिकार दिलाने का ताउम्र प्रयास करते रहे डॉ अमरनाथ झा | संस्कृत, उर्दू में महारत हासिल थी लेकिन विशेष लगाव हिंदी से था | शिक्षा जगत में बहुमूल्य योगदान देने वाले महान शिक्षाविद डॉ अमरनाथ झा का जन्म बिहार के मधुबनी जिले में 25 फरवरी, 1897 को हुआ था |
https://hapurhulchul.com/?p=18682
अमरनाथ झा ने अंग्रेजी के (Amarnath Jha in English)
अमरनाथ झा ने अंग्रेजी के विद्वान होने के साथ-साथ वे फारसी, संस्कृत, उर्दू, बंगाली और हिंदी भाषाओं के अच्छे जानकार थे | उनकी शिक्षा-दीक्षा इलाहाबाद में हुई थी | एमए की परीक्षा में वे ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में टॉपर रहे थे | उनकी योग्यता देखकर एमए पास करने से पहले ही उन्हें ‘प्रांतीय शिक्षा विभाग’ में अध्यापक नियुक्त कर लिया गया था | हिंदी को राजभाषा बनाने के उनके सुझाव को स्वीकार किया था और फिर बाद में हिंदी को ‘राजभाषा’ का दर्जा दिया गया था |
प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहने के बाद (After being a professor and head of the department)
लंबे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रमुख रहे, जहां उन्हें मात्र 32 साल की आयु में नियुक्त किया गया था | यहां वे प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहने के बाद साल 1938 में विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने और साल 1946 तक इस पद पर बने रहे | बाद में उन्होंने एक साल ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ के वाइस चांसलर का पदभार संभाला तथा उत्तर प्रदेश और बिहार के ‘लोक लेवा आयोग’ के अध्यक्ष रहे | इसके साथ ही उन्होंने अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया | उन्हें पटना विश्वविद्यालय ने डी.लिट् की उपाधि प्रदान की थी | शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए साल 1954 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया | 2 सितम्बर, 1955 को उनका देहांत हो गया |