यूपी के रास्ते बंगाल, उड़ीसा, बिहार पहुंच रही हैं नकली दवाएं
हिमाचल में बन रही नकली दवाएं उत्तर प्रदेश के रास्ते पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, आंध्र प्रदेश सहित अन्य राज्यों में पहुंच रही हैं। इस कारोबार में आगरा, लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर सहित अन्य महानगरों की दवा मंडी के कई व्यापारी संलिप्त हैं। अब इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए एसटीएफ और एफएसडीए ने संयुक्त रूप से मुहिम शुरू की है।
प्रदेश में करीब 70989 थोक एवं 105700 फुटकर दवा कारोबारी हैं। हर दिन 50 करोड़ से ज्यादा का कारोबार होता है। ऐसे में दवा कारोबारियों के बीच नकली दवा का नेटवर्क तैयार हो गया है। यह नेटवर्क नामचीन कंपनियों के ब्रांडनेम से मिलते-जुलते नाम वाली दवाएं तैयार कर उत्तर प्रदेश के रास्ते विभिन्न राज्यों तक पहुंचा रहा है।
नवंबर और दिसंबर 2022 में नोएडा में नकली दवा बनाने की कंपनी पकड़ी गई। इसके आधार पर हुई पड़ताल में नकली दवा का नेटवर्क होने की जानकारी मिली थी। इस बीच वाराणसी में एसटीएफ के एडिशनल एसपी विनोद कुमार सिंह के नेतृत्व में करीब सात करोड़ की दवा की खेप पकड़ी गई। दो दिन पहले वाराणसी में भी पांच लोगों को पकड़ा गया, जो वाराणसी में दवा स्टोर करने के बाद पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, आंध्र प्रदेश तक पहुंचाते थे। अब तक कुल 17 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
पूछताछ में पता चला कि ये नकली दवाएं हिमाचल प्रदेश से तैयार होकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न महानगरों के रास्ते वाराणसी तक पहुंची। वहां से बिहार, पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों तक पहुंचती हैं। गिरफ्तार लोगों से पूछताछ हुई तो पूरे नेटवर्क का खुलासा हुआ। इसके आधार पर एफएसडीए और एसटीएफ ने जांच का दायरा बढ़ाया तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए।
सूत्रों का कहना है कि पूछताछ में यह बात सामने आई है कि पूरे प्रदेश में नकली दवा मंडी तैयार हो गई है। इस मंडी से दो तरह का नेटवर्क जुड़ा है। एक तो बड़ी मंडी से दवा वाराणसी सहित आसपास के जिलों तक पहुंचाता है। फिर यहां से बसों के जरिए पैकेट बंद दवाएं अलग-अलग राज्यों में पहुंचाई जाती हैं। बस के एक स्टाप से दूसरे स्टाप पर पहुंचने पर दवा पहुंचाने वाला व्यक्ति बदल जाता है।
इसी तरह दूसरा नेटवर्क फुटकर कारोबारियों के बीच काम करता है। यह छोटे-छोटे पैकेट में विभिन्न बाजारों तक दवा पहुंचाते हैं। वहां से मेडिकल स्टोर पर पहुंचता है। सूत्रों का कहना है कि पकड़े गए लोगों से मिले सुराग के आधार पर वाराणसी ही नहीं बल्कि आगरा, लखनऊ, गोरखपुर, मेरठ, बरेली सहित अन्य महानगरों के दवा कारोबारियों को भी राडार पर लिया गया है। इनकी गुपचुप तरीके से पड़ताल की जा रही है।
ब्रांडेड दवा के नाम से मिलती जुलती दवाएं सस्ती दर पर दी जाती हैं। जो ब्रांडेड दवाएं 50 रुपये की मिलती हैं तो उसी की नकली दवाएं 30 से 40 रुपये में उपलब्ध कराई जा रही हैं। सूत्रों का कहना है कि नकली दवा कारोबार में मेडिकल और इंजीनियरिंग से लेकर इंटरमीडिएट डिग्रीधारी तक शामिल हैं। सभी को उनके काम के हिसाब से रुपये मिलते हैं। यही वजह है कि इस गिरोह के सदस्य पुलिस और एफएसडीए की पहुंच से दूर रहते हैं।
नकली दवाओं में ज्यादातर कैंसर की दवाएं हैं। इसके अलावा गर्भपात, फेफड़े सहित विभिन्न तरह से संक्रमण, गठिया रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ी दवाएं हैं। वहीं जांच के दौरान यह तथ्य भी सामने आया है कि वाराणसी के शुभम जायसवाल व अभिषेक सिंह ने उड़ीसा में नकली दवा आपूर्ति की। जब वहां इनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई तो दवा आपूर्ति का लाइसेंस निरस्त करवा लिया। इसके बाद नकली दवा की सप्लाई में जुट गए।
एसटीएफ के साथ एफएसडीए की टीम लगी हुई है। पूरे प्रदेश में जांच की जा रही है। इस नेटवर्क को पूरी तरह से तोड़ा जाएगा। विभिन्न महानगरों की दवा मंडी पर भी नजर रखी जा रही है।